दिव्या जब चलती थी तो उसका हुस्न अधभरी गागर के भांति छलकता था। कोई उसे चाहे आगे से निहारता था या पीछे से, आग वो दोनों के सीने में सुलगा देती थी। उसके हुस्न को देख जवान लौंडे ही नहीं बूढ़े भी खुजली करने लगते थे। शहर से पढ़के आई लड़कियों के बारे में वैसे भी गॉंव के लोगों के सोच दयनीय होती है। मगर एक लड़की का बरेली से एल एल बी करके यूँ भरे भरे जिस्म में वापिस आना गॉंव के कुआरे विआहे ,रंडवे सब की नजर उस कन्या पर थी। पर वो इतनी तेज़ तरार थी की किसी का हौंसला नहीं पड़ता था की उसकी आँख से आँख भी मिला सके। गर्मी का मौसम था ,और अमावस की रातें थी। आधी रात को अँधेरा और भी घना हो गया था। ऐसी रातें ही प्रेमियों के मिलन की रात होती है। जब तन मन की गर्मी बाहर की गर्मी से ज्यादा सताने लगती है। दिव्या ने घर के गेट को हौले से खोला और दबे पॉंव वो अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगी। कानों में इयरफोन लगा रखे थे।चाल में जितनी मादकता थी उससे ज़्यादा था में चल रहा कोहराम। दीवार के साथ सटकर चल रही थी कि कोई देख ना ले। फिर धीरे से वो माइक पे कुछ बोली। और एक घर के आगे वाले गेट को हल्का धक्का दिया। धक्के के साथ ही गेट खुला वो अंदर हुई और धड़म से गेट बंद हुआ.मानव की मजबूत बाजुओं ने दिव्या को अपने आगोश में भर लिया। ना जाने कब से दोनों मिलने के लिए तरस रहे थे।और अकेले में इस पहिली मुलाकात को कितनी मुश्किल से प्लैन किया था। दोनों के जिस्मों से पसीने की खुशबू घुलमिल रही थी। आगोश में एक दुसरे को भर लिया था। बातों का सिलसिला जैसे टूट ही गया था। मानव की गर्म सांसे अपनी गर्दन पर महसूस करते ही दिव्या ने बाँहों को और कसके भींच लिया था। जैसे ही मानव के होंठ उसकी गर्दन पर टकराए मानों किसी कोयले में आग भड़क उठी हो। मानव के होंठ गर्दन पे फिसलने लगे। हाथ पीठ पर कसने लगे और एक जगह न रुककर पूरी पीठ को सहलाने लगे थे। अचानक वो रुका उसके चेहरे को हाथों में भरा और आँखों में आँखे डालकर उसके होंठो को होंठो से छूते हुए फिर पीछे खिसकाकर एक दम से दिव्या के होंठो को कस लिया। नर्म होंठो को वो किसी भौरें की भांति फूल समझकर चूसने लगा। उसके हाथ गर्दन को सहलाने लगे थे। और खिसकते हुए टी शर्ट के अंदर घुसते चले गए। जिस जौवन को देख कर हर कोई मचलता था अब वो उसके हाथों में मचल रहा था.उसकी उंगलियों की कसावट जैसे ही बढ़ रही थी दिव्या की सांस फूल रही थी। उसको सिर्फ मानव के होंठो का सहारा था। मानव ने अपने हाथो से उसको कपड़ों के बोझ से मुक्त क्र दिया था। उसने पहना भी क्या था ?सिर्फ टी शर्ट और पजामा ,और उसके नीचे कुछ भी नहीं मिलन के नियमों को वो जानती थी। मानव के हाथों की हरकतों ने उसके नग्न शरीर को बैचैन क्र दिया था। इसलिए वो उसकी बाँहों में झूल गई थी। #HarjotKiKalam मानव ने दिव्या को बाँहों में उठा कर खटिया पे लिटा दिया। खुद बादलों की भांति उसके जिस्म पर लेट गया। उसके होंठ चिहरे से गर्दन पर गर्दन से नीचे खिसकने लगे। उसने हर हिस्से को होंठो से चूमा और जीभ से सहलाया .उसकी हर हरकत से दिव्या की जाँघे उसकी कमर को कस लेती थी। जिनके भीतर उसकी उँगलियाँ छलकती गागर को सहला रही थी। हर बीत रहे पल के साथ जिस्मों में ये गर्मी बढ़ती जा रही थी। धरती की प्यास को बादल भली भांति समझ रहे थे। उस प्यास को बुझाना ही मकसद था। जैसे ही वो पल आया तो दिव्या के मुख से एक आह के सिवा कुछ न निकला। उसकी उंगलिया मानव की नंगी पीठ पर चिपक गई थीं। उसने अपनी कमर को पूरी तरह से मानव की कमर से सटा लिया था। खटिया और दोनों की सिसकारियों के सिवा अँधेरी रात में कुछ वि सुनाई नहीं दे रहा था। पूरे जिस्म के हर कोने से पानी ही पानी छलक रहा था। मानव उसको बाँहों में भींच कर पूरी रफ्तार से अपनी रेस दौड़ रहा था। जब तक दिव्या के जाँघे उसकी कमर पर कस न गई और उसके मुँह से निकला बस !! और कुछ पल के बाद मानव भी उसके उप्पर ही लुढ़क गया था। मगर श्रावण की बारिश भी वार वार होती है इसलिए दोनों के मिलन की ये बारिश उस रात कई वार हुई। जब तक तन मन के शांत हो जाने का भर्म न हुआ। भौर के उजाले से कुछ समय पहले ही दिव्या घर वापिस चलने लगी। रात भर के मिलन ने उसकी चाल को बदल दिया था.जिसमें लचकता अधिक थी और जिस्म में मादकता भी। वो खुद में खोई अपने घर के अंदर दाखिल हुई। इस बात से अनजान कि कोई दो आँखों ने उसको देख लिया था। यारी के चर्चे छिड़ने वाले थे। हलाकि देखने वाला अंदाज़ा न लगा पाया की लड़की थी कौन दिव्या या उसकी भाभी दीपिका !!!! कुछ भी ही गांव वालों को मसालेदार बातें करने का मौका मिलना वाला था पर उससे पहले हम पढ़ेंगे कि मानव और दिव्या आखिर मिले कैसे और प्यार के इस खेल के मिलन की रात तक का सफर कैसे पहुंचा। अगले हिस्से में।
“कुछ लोगों के पास वश में करने की शक्ति होती है, अन्यथा अच्छे भले समझ्दार लोग वो कर बैठते हैं जो वो कभी सोच में भी नहीं सकते, ये बंगाली बाबा शहरों में ऐसे ही तोह नहीं बैठे हैं.
ऑफिस के लिए जाते हुए शीतल को बाबा बंगाली के बोर्ड के ललिता की बात याद आ गयी । आरती और बॉस के अफेयर के चर्चे आज कल हर एक की जुबान पर थे। कैसे बॉस की बीबी के सामने सुंदरता में कम होने के बावजूद बॉस को अपने चुंगल में जकड़ लिया इसके बारे में हर एक का अपना अलग मत था। और एक मत ललिता का भी था।
यह जून के महीने का मध्य में था।गौरव उसे ऑटो स्टैंड से ऑटो में बिठा के अपने आफिस चला गया था। ऑटो से एक सवारी उतरती और दूसरी चढ़ जाती। एक जगह से एक नौजवान लड़का चढ़ा और उस के साथ चिपक कर बैठ गया। उसने एक दो बार दूर होने की कोशिश भी की परन्तु कुछ देर बाद वह फिर उसके साथ चिपक सा जाता। उसके लिए ये रोज़ का काम था इन जैसे लोगों को झेलना और फिर उसका झगड़ना भी ।पर जब लड़के ने अपनी जेब में से मुबायल निकालने के बहाने जेब के अंदर से ही उसकी जांघो के पास से हाथ को छुहना चाहा और फिर कमर के पास से हाथ फिराने की कोशिश की। तो वह एकदम उसके उप्पर झ्हला उठी। आँखें दिखाते हुए उसको बोला ।
-‘दूर हटकर बैठ’, लड़का एकदम ठिठक गया। उसको शायद अपनी जवानी और मख़मली ख़ूबसूरती पर शायद गर्व था ,इस लिए इतना व्यवहार हुआ देख एकदम भौचक्का रह गया और फिर शीतल से अच्छी दूरी बना कर बैठ गया.
उसने हमेशा यहीं किया था कभी भी किसी को भीड़ में ख़ुद के साथ मौके का फायदा लेने जैसी गुस्ताखी नहीं करने दी थी । बहुत से तो उसकी आँखें की घूरी और माथे की सिलटन देख कर ही दूर हो जाते थी। फिर भी अगर कोई मजनूं बन पास आने की कोशिश भी करता तो इस तरह डांट खा कर ही जाता ।
उसदे दूर बैठते ही उसको फिर आरती के आगे पीछे मंडराता अपना बोस याद आने लगा।उसके दिमाग़ में फिर तांत्रिक और डेरे घूमने लगे। वशीकरन और मुट्ठीकरन के टीवी अखबारों में छपते विज्ञापन क्या सच्ची सत्य हो सकते हैं? क्या वह भी आज़मा कर देखे अगर ये सच है मगर कहां से और किसके उप्पर ?
गौरव के साथ उसका रिश्ता अच्छा चल रहा था । 10 साल के विवाह में दो बच्चे थे और कभी भी उन दोनों की आपस में किसी बात पर बड़ी अनबन नहीं था हुई। घर गृहस्थी बहुत अच्छी चल रही था। कहीं इन तांत्रिको के चक्र में घर का ही नुक्सान न हो जाऐ।
उसने सुना था कि शैतानी शक्तियां, शक्तियों को आजमाने वाले एक दिन उन शक्तियों के ख़ुद शिकार हो जाते हैं। परन्तु क्या पता उपाय कर लेने से गौरव के माँ बाप गैरव के बड़े भाई की अपेक्षा उसका अधिक स्नेहकरने लग जाएँ। पूरे आफिसके समय वह यही सोचती रही। परन्तु किसी को कुछ भी बताया नहीं।
शाम को वापिस आते हुए भी फिर वही विचार उसके मन में चल रहे थे। उसको लगा कि यह सब सोच सोच वो पागल हो जाऐगी। पहले की तरह आटो में बैठी वहाँ उत्तरी जहाँ गौरव उसे छोड़ कर गया था । यहाँ से इस समय पर उसको घर तक अलग से आटो ले कर जाना पड़ता थी। गौरव केआफिस का समय उस से तीन घंटे बाद तक का था । ऑटो स्टैंड के सामने लगे तांतरिकें के बोर्डों की तरफ देखती सोचती वह आटो में बैठ ही गई।आटो पूरा भरने के बाद चलता था । एक एक करके सारी सवारियों बैठतीं रही। और जब आखिरी सीट खाली बची अचानक से एक अधेड़ उम्र का आदमी सा बिना शेव के कहीं कहीं दाढ़ी में कोई कोई सफेद वालों वाला,आटो में बैठा। सिर्फ़ शीतल के नज़दीक की जगह ही खाली थी। वहाँ ही वह फँस कर बैठ गया था। उसको एडजस्ट करने के लिए शीतल को अपना साँस अंदर खींचना पड़ा और ख़ुद को सिकोड़ना पड़ा। पैर में चप्पल, गंदी सी नजर आती लोयर और काला कुरता उसने पहना हुआ था । शीतल को कुछ अजीब सा महसूस हुया । गर्दन घुमा कर वह उसके चेहरे की तरफ देखना चाहती था। परन्तु कुछ पलों के लिए ही देख सकी था। फिर सिर नीचे करके बैठी रही। चलते आटो के बजते झटको में दोनों आपस में कई बार टकराए।टकराते कंधों के साथ जून महीने की तपिश ओर भी बढ़ने लगी थी। उसआदमी ने कई बार अपने जेब में से बीच बीच में कुछ न कुछ निकाला। हर बार उसका हाथ शीतल की जांघों और कमर के पास से छू कर गुज़रता था। टांगें के बीच रखे अपने बैग को खोलते हुए उसकी कोहनी की नोक कई बार शीतल के सीने के साथ टकराई था।जानबूझ कर वो ये कर रहा था या अनजाने में इसका उसको पता नहीं था। परन्तु हमेशा की तरह हर एक को झिड़कने वाली शीतल एक दम शांत थी। पता नहीं किस चीज़ ने अचानक ही कुछ घंटों में इस तरह उसको बदल दिया था वह कुछ भी कहसकने तथा हिलने से असमर्थ थी। उसकी कालोनी के पास पहुँचने तक वह जितनी भी छेड़छाड़ कर सकता थी उसने की। पता नहीं बैठते ही उसको बिना उस की तरफ देखे कैसे पता लग गया थी कि कहाँ से कहाँ से शीतल ने अपने जिस्म को कपड़ों ने नहीं थी ढका हुआहै । और कैसे उस उस जगह को सिर्फ़ तार की तरह टुनका देता था। जिस के साथशीतल पूरे जिस्म में कपकपी सी छिड़ जाती थी। हर हरकत के साथ वह ख़ुद को और भी अपने आप में सिकोड़ लेती और जांघो को भी भींच लेती। परन्तु एक बार भी उसका उस आदमी की तरफ ताकने का या कुछ कहने का होसला न हुया मानो उसकी त्वचा के बिना बाकी सब सेंसज ज़ीरो हो गई हों । और वह पत्थर बन गयी हो । बस जो जिस्म बिजली सी थी वह एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक दौड़ रही थी । आँखें उसकी बंद हो रही था। समय मानो उसके दिल की रफ़्तार जितना तेज दौड़ रहा था । जब तक अचानक आटो की ब्रेक नहीं लगी और उस आदमी के हाथों ने आखिरी बार उसको छुया और नीचे उतरने लगा। आटो वाले के दो तीन बार कहने के बाद शीतल को उत्तरना याद आया।बर्फ़ की तरह जमीं बाकी सैंसज एक दम शरीर के तापमान के बराबर हो गई वह आदमी उत्तर कर किराया दे रहा था ।उसके बाद ही शीतल ने आटो वाले को किराया पकड़ाया था । वह चलने ही लगी थी कि उसने बाद में आवाज़ दी।
-“मैडम,यह ऐडरैस्स बता सकते हो इस कालोनी में कहाँ है?”
कुछ पल उस की तरफ इक्कटक्क देखकर वह जैसे ही जागी,” उस के पास से कागज़ लिया और लिखा ऐडरैस्स देख एक दम चौंक गई जैसे किसी अनहोनी का न्योता हो।
“जी मुझे मिस्टर गौरव ने आर.यो की सर्विस के लिए भेजा है. मेरा नाम नितिन है और मैं अहूजा इलैकट्रिल वर्कस में इंजीनियर हूँ। नितिन ने उसकी आँखें में सीधे ताकते हुए जवाब दिया।
शीतल को अचानक समरण आया कि प्रातःकाल ही तो आटो में बैठते वक्त गौरव ने कहा था कि वह आर ओ की सर्विस के लिए किसी को भेजेगा।अचानक उसकी सुरत संभली ।आटो में जो कुछ हुआ उसको भूलने की कोशिश करते हुए नितिन को ले कर उसने अपने घर में प्रवेश किया । उसके मन में अभी तक एक अजीब सा कुछ बना हुआ था.
नितिन को किचन दिखा कर वह अपने कमरे में पर्स रख आई,वापिस आ कर उसको पानी पूछा और ख़ुद भी पानी पिया। पानी पीता वह उस की तरफ कनखी नज़र के साथ देखता हुआ आर ओ का मुआइना करने लगा। परन्तु उसकी घूमतीं नज़रों को शीतल ज़्यदा देर तक सह न सकी। उसको अपना काम खत्म करने और कोई ज़रूरत होने और बुला लेने के लिए कहकर वह अपने कमरे में आ गई। उतनी देर तक उसने कपड़े बदल लेने की सोची। किचन और बैडरूम में सिर्फ़ लॉबी का फासला था।
पर्दे को अच्छी तरह लगा कर वह कपड़े बदलने लगी। अचानक उसको लगा किचन में से आती आवाज़ बंद हो गई हो और पूरे घर की सुन्न आवाज़ उसको सुनने लगी हो। उसके मन में सुबह के ख़त्म हुए ख़्याल फिर एक दम उभर आए।नितिन का चेहरा बोलने चलने का ढंग उसको फिर से अजीब सा लगा उसके पहने कपड़ों और हरकतों की तरह काले कपड़े और तेज सी नजर । उसको इस तरह लगा जैसे कमरे के पर्दे अभी अभी हिले हो। हवा का एक झोंका कमरे के किसी कांतर में से अंदर आया हो। पता नहीं पर्दे चलते पंखे के कारण हिल रहे था या उनके पीछे कोई था।
अचानक उसको अपनी गलती का एहसास हुआ । अकेली घर होने के बावजूद एक अजनबी की मौजुदगी में बिना दरवाज़ा बंद किये कैसे वह कपड़े बदलने की गलती कर रही था। तब तक उसने साड़ी उतार कर साईड पर रख दी थी। इस ख़्याल के मन में आते ही वह आहिस्ता चलती दरवाज़े को बंद करने के लिए वहाँ तक गई।
मन की तसल्ली के लिए उसने जरा सा पर्दा हटा कर देखा। पर्दे के पीछे से दो आँखें उस की तरफ अचानक चमक उठी जैसे अंधेरे में बिल्ली की आँखें चमकतीं हैं । वह एकदम ठिठक कर पीछे हट गई। जिस्म एक दम काँप गया। नितिन की आँखें उसके जिस्म को जैसे ही पैरों से नीचे तक निहारने लगीं उसको अपनी हालात का अंदाज़ा हुआ ।उसके जिस्म पर दो कपड़ो के सिवा कुछ नहीं था वो वि उसकी खूबसूरती को पूरी तरह से ढकने में नाकाम थे। वह धीरे धीरे पीछे की तरफ हटने लगी। परन्तु उसके देखने के तरीके और मौजुदगी ने जैसे उसकेसारी गतिविधियों को कील लिया हो। जितना वह पीछे हो रही थी उतना ही वह आगे आ रहा थी। सोफे तक पहुँच कर वो पीछे की तरफ़ जाने के लायक नहीं थी रही। और तब तक वह उसके इतने करीब आ गया थी कि उसके जिस्म की महक भी वह महसूस कर पा रही थी। एक भी शब्द दोनों के मुँह से नहीं निकल रहा था। नितिन के मजबूत हाथ उसके कंधों पर टिके,कंधो के मांस को दबाते हुए, सहलाते हुए कमर के पास से दोनों तरफ़ अपने हाथों के साथ उसको जकड़ लिया। अपने पास खींच कर दोनों के दरमियान आखिरी दूरी को भी मिटा दिया। शीतल के चेहरे को पास खिसकाते हुए और गर्मी की उस शाम को साँसों का ताप अलग ही महसूस हो रहा थी। एकदम एक दूसरे में लगभग खोके वह मदहोशी के आलम में डूब रहे थे। आटो की मदहोशी की अपेक्षा भी अधिक अपने आप को भूल कर उसके जादूमयी व्यक्तित्व में शीतल उलझ कर रह गई थी। अपने आप को और अपने हालात को भूल गई थी जैसे अचानक ही किसी अदृश्य शक्ति के बस में हो। उसके कंधों गर्दन और पीठ कोसहलाते हुए नितिन के हाथों ने उसकी पीठ पर मौजूद अंतिम भार को भी उतार कर शरीर को और हलका कर दिया।उस भार को उसके हाथों नाजुकता से संभाल लिया। हाथों की उंगलिओ की हरकतों के साथ शीतल बेचैन होती उसके बाजुओं में घुटती चली गई। जब तक दोनों बैड पर गिर कर कपड़ों की तरह ख़ुद बिखर न गए हों । शीतल की आँखें इस पूरे प्रकरण में बंद थी। जब भी वह झटके के साथ आँखें खोलती तो मोटी मोटी आँखें को उस की तरफ ही देखते देख फिर बंद कर लेती।हर बार ही यह आँखें उस की तरफ ही कैसे देख रही थी? वह भी तब जब उसकी हरकतों ने पूरे जिस्म को ही जुआलामुखी की तरह जगा दियाथा ।शीतल के होंठ चूमते हुए नितिन के होंठ उसके जिस्म पर फैलने लगे। उसका चेहरा उसको प्यार करता चूमता और छेड़खानी करता रहा. उसकी ,गर्दन ,छाती और पेट से ले कर हर हिस्से में तरंग छेड़ता गया। हाथों ने तो पहले ही उसके अगले आने वाली हर हरकत की ऐंडवास तैयारी कर लिए थी। जो उसकी जांघो और कूल्हों के बीच मचल रहे थे।कब दोनों के बीच मांस के सिवा कोई पर्दा न रहा शीतल को पता भी न चला । ऐसे लग रहा था इस शाम का इस मिलने का समय ,विधि और सब पहले ही नियत किया जा चुका था । और पता नहीं कब से वह इस घटना को जी रही थी और अचानक वह सब घट रहा था । जिसने उसके मन और जिस्म तक एक चिरंजीवी प्यास को जगा दिया था और जिसको बुझाने के लिए वह ख़ुद को नितिन के साथ कसती चली गई उसकी बाँहों में सिकुड़ती चली गई । और जो उसके मन तन पर पूरी तरह फैल गया था। और इस तरह उसकी हर हरकत हर आवाज़ और सिसकी को महसूस करके ख़ुद की हर मूवमैंट को बदल रहा था कि सिवाए अपने आप को उसके हवाले कर देने से उस के पास ओर कोई रास्ता नहीं था। उसकी आँखें में झांकते हुए शिखर पर पहुँचने का एहसास ने उसके तन मन को निचोड़ कर रख दिया। थक के चूर हो कर दोनों एक तरफ़ लुढ़क गुए। गर्मी धूप और ऊपर से पंखे की हवा में यह सब करके शीतल एक दम थक गई थी। कुछ देर के लिए उसने आँखें बंद कर ली। जब उसके पास से नितिन के उठने का एहसास उसको हुआ । सिर्फ़ यह कहकर कर कि जब काम ख़त्म हो जाऐ तो उसको बतादे वह वैसे ही लेटी रही।
उसके सिर को तेज़ नींद ने जक़ड लिया था। जबलगातार डोर बेल के साथ व हहड़बड़ा कर उठी। फटाफट कपड़े पहन वह बाहर निकली । जाते जाते किचन में निगाह मारी पर वहां कोई भी नहीं था। बिना बताए बिना कुछ बोले नितिन किधर चला गया। उसका मन में बात कौंधी ।
दरवाज़ा खोलकर पूछा तो आगे से सेलज़मैन दिखते नौजवान ने कहा,” मैडम मुझे मिस्टर गौरव ने आर ओ की सर्विस के लिए भेजा है “।
शीतल उसकी तरफ इस तरह ताकने लगी जैसे कुछ सुना ही न हो। अगर यह मकैनिक है और वह कौन था जो अचानक आया और गायब हो गया। उसका मन विचार की धाराओं में खो गया था दूसरी बार लड़के के कहनेपर उसको अंदर ले कर आने की याद आई।
किचन में आर ओ दिखा कर और वह वापिस कमरे की तरफ आती सोच रही थी कि कहीं जो सब उसके साथ हुआ केवल स्वप्न तो नहीं था।
कमरे में पहुँच कर उसके बिखरे कपड़े और बिस्तर के हुए बुरे हाल से उसको समझ थी कि जो हुआ असली था । परन्तु अगर वास्तव में अचानक कुछ घंटे में ही कोई शख्स इस तरह आटो से बैड तक कैसे पहुँच गया और उसको गौरव की बात का कैसे पता चला ? उसकी अजीब शकल सूरत और कपड़े और फिर इस तरह उसको कील लेना। कहीं वह वशीकरन का शिकार तो नहीं हो गई। कहीं वह कोई ऐसा ही तांत्रिक वग़ैरा तो नहीं था । परन्तु वह चोर भी तो हो सकता है !!
उसके सोच का घोड़ा पल पल विचार बदल रहा था उसने कमरे में आस पास देखाहर तरह का कीमती समान अपनी जगह पर था । सोचती सोचती वह लेट गई।कभी कुछ मिनटों पहले हुई क्रिया उसके मन में दौड़ने लगती कभी उसकी आँखें बंद हो जाती कभी उसका गायब होना का विचार मन में कौंधने लगता ।उसके मन तन को बुरी तरह थका दिया था । तब तक जब तक इंजीनियर ने आर ओ की सर्विस खत्म कर मैडम कह कर बुलाया नहीं और सर्विस काबिल उसको पकड़ा नहीं दिया। उस की तरफ बिना देखे उसने अपना पर्स उठाया और देने के लिए पैसे निकालने लगी। एक बड़े ही रेश्मी तरह का कागज़ पैसों के साथ बाहर गिरा। उसने पैसे देकर इंजीनियर के चले जाने के बाद में कागज़ को खोला और पढ़ा।
“मुझे पता है मेरे अचानक इस तरह गायब होने के बाद बहुत से सवाल तुम्हारे मन में आऐंगे और अगर कोई इंजीनियर मेरे बाद में आ भी गया तो ओर भी ज़्यादा सोचने के लिए मजबूर हो जाओगी । परन्तु मैं बता देना चाहता हैं कि मैं इंजीनियर नहीं था न ही तुम्हारे हसबेंड ने मुझे भेजा था । वास्तव में मैं भी उसी चौक से रोज़ आटो पकड़ने वाला एक शख्स हूँ। पिछले कई महीने से रोज़ तुम्हारे हसबेंड के साथ तुम्हारे आने जाने को नोट कर रहा था तुम्हे पहली बार देखते ही तुम्हारी तरफ अचानक खिंचा गया था। और तुम्हारे तक पहुँचने के लिए कई कुछ प्लैन किया। परन्तु आज तुम्हारे हसबेंड की बात सुनी बाद में फिर मैं इंजीनियर बन तुम्हारे साथ आटो में आने का प्लैन बनाया।मुझे भी नहीं पता था कि मैं इस हद तक पहली बार में कामयाब हो जाऊँगा। परन्तु जो भी समय तुम्हारे साथ बीता यह अलग था अलहिदा था और इतनी संतुष्टि कभी नहीं महसूस की। तुंम्हारे बारे में भी ऐसा ही समझता हूँ यह हमारी पहली मुलाक़ात थी और आखिरी भी। “
तुम्हारा कुछ भी नहीं
“गुमनाम “
शब्दों को पढ़ती पढ़ती शीतल जैसे कहीं खो गई हो। पल भर के लिए उसको यकीन न हुआ ।परन्तु सत्य उसके सामने था उसके अपने मन के डर वहम और वशीकरन जैसे फ़िज़ूल के विचारों ने उसको किसी के आगे इतना कमज़ोर कर दिया था कि एक छोटी सी कोशिश करके ही उसके तन और मन और पर कब्ज़ा कर गया था । उसको वशीकरन की असली शक्ति की समझ आ गई थी।