
खुद को ढीला छोड़कर बाहों में सिमट जाना ,
याद आता है बहुत तेरा मुझसे लिपट जाना ।
तेरे दिल की धक-धक मुझको सुनाई देती है ,
याद है,आगोश में तेरे बदन का महक जाना ।
तेरे चेहरे को को चूम लूं या जिस्म को सहलाऊं,
याद है कभी भी मुझसे ये फैसला ना हो पाना ।
मेरी होंठो की गर्मी जब तेरे अंग अंग में समाई,
मुझको समा लेने के लिए तेरा मचल जाना।

।जैसे तितली के पंख हो या पत्तियाँ गुलाब की।
। महक चन्दन की हो या भरी सुराही शराब की।
।जब छूता हूँ कंपकंपा जाए,जैसे तार सितार की।
।जब चूमता हूँ कसती हैं ,जैसे कली कचनार की।
।इक बहता दरिया नीर का ,और खुद प्यासा भी,
।मेरी आगबुझाएगी प्यास तेरी,मुझे आशा भी है।

तुम सिसकाते क्यों हो ?
जब एक एक कर उतारता हूँ वस्त्र,
हाथों से खुद को छुपाते क्यों हो ?
चूम कर होंठो तेरे, तुझसे नज़र मिली,
फिर झुका के चिहरा शर्माते क्यों हो ?
झटके से तुझको बाहों में भरके ,
तेरे सीने पे अपने होंठो रगड़ के,
हाथों से जब मैं तेरी पीठ सहलाऊं,
तुम धीरे धीरे फिर सिस्काते क्यों हो ?
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